Patna: बिहार में चुनाव से पहले चल रहे विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (Bihar Voter List Revision) अभियान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने से इंकार कर दिया है। हालांकि, इस मामले को बेहद संवेदनशील बताते हुए कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई की तारीख 28 जुलाई 2025 तय की है।
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जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि वह चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था के कार्य में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती। कोर्ट ने इस बात पर भी बल दिया कि मतदान का अधिकार लोकतंत्र की जड़ है और मतदाता सूची का पुनरीक्षण एक संवेदनशील प्रक्रिया है। सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा कि जब 2003 में भी विशेष गहन पुनरीक्षण हुआ था, तो अब इसे चुनाव से ठीक पहले ही क्यों किया जा रहा है? इस पर चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने जवाब दिया कि मतदाता सूची में संशोधन एक सतत प्रक्रिया है और समय-समय पर इसमें नाम जोड़ने और हटाने का काम होता है।
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Bihar Voter List Revision: 28 जुलाई को होगी अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों पर भी विचार किया जाए। हालांकि कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह आयोग को ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर रहा, लेकिन अगर आयोग किसी दस्तावेज को खारिज करता है, तो उसके पीछे का कारण स्पष्ट किया जाना चाहिए।
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याचिकाकर्ताओं में विपक्षी दलों के कई प्रमुख नेता शामिल हैं, जिनमें आरजेडी से मनोज झा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, टीएमसी की महुआ मोइत्रा, एनसीपी की सुप्रिया सुले, जेएमएम से सरफराज अहमद, भाकपा से डी राजा, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) से अरविंद सावंत और भाकपा (माले) से दीपांकर भट्टाचार्य शामिल हैं। इन सभी ने चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी है और इसे एससी, एसटी, ओबीसी मतदाताओं के अधिकारों का उल्लंघन बताया है। अब चुनाव आयोग को एक सप्ताह के भीतर इस मामले में काउंटर एफिडेविट दाखिल करना होगा और यदि याचिकाकर्ता को कोई प्रत्युत्तर देना है, तो वह भी 28 जुलाई से पहले कोर्ट में दायर करना होगा।