29 C
Jharkhand
Tuesday, October 14, 2025

Contact Us

डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 44(3) पर विवाद: विपक्ष ने RTI खत्म करने का लगाया आरोप

विपक्ष ने डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 44(3) को बताया RTI के खिलाफ, की निरस्त करने की मांग

नई दिल्ली: विपक्षी गठबंधन भारत ब्लॉक ने केंद्र सरकार के खिलाफ डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन की मोर्चा खोलते हुए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट, 2023 की धारा 44(3) को लोकतंत्र के मूलभूत अधिकारों के खिलाफ बताया है। गुरुवार को आयोजित एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया कि यह धारा सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act), 2005 को निष्प्रभावी बना देती है और पारदर्शिता की भावना को खत्म करती है।

क्या है विवाद की जड़?

धारा 44(3) डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम का एक भाग है, जो कहता है कि कोई भी जानकारी जो “व्यक्तिगत जानकारी” की श्रेणी में आती है, उसे RTI के माध्यम से साझा नहीं किया जा सकता, भले ही वह सार्वजनिक हित में क्यों न हो।

वहीं, RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) पहले यह स्पष्ट करती थी कि यदि जानकारी सार्वजनिक हित में हो, तो निजता से संबंधित होने के बावजूद उसे साझा किया जा सकता है। लेकिन DPDP एक्ट इस संतुलन को बिगाड़ देता है।

विपक्ष का आरोप: RTI को कमजोर करना लोकतंत्र पर हमला

कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा कि यह कानून पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना को समाप्त करता है। उन्होंने बताया कि विपक्ष के 120 से अधिक सांसदों ने एक संयुक्त ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसे जल्द ही केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव को सौंपा जाएगा।

गौरव गोगोई के साथ डीएमके से एमएम अब्दुल्ला, शिवसेना (यूबीटी) से प्रियंका चतुर्वेदी, सीपीआई (एम) से जॉन ब्रिटास, सपा के जावेद अली खान, और आरजेडी के नवल किशोर जैसे वरिष्ठ नेता भी इस प्रेस वार्ता में शामिल रहे।

नागरिक समाज का भी विरोध

कई नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और RTI एक्टिविस्ट्स ने इस संशोधन पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि अब सरकार किसी भी जानकारी को “व्यक्तिगत” बताकर रोक सकती है, चाहे वह घोटालों, अनियमितताओं या सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी से ही क्यों न जुड़ी हो।

सार्वजनिक हित बनाम निजता: क्या है संतुलन?

RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) नागरिकों को यह अधिकार देती थी कि वे सरकारी फैसलों और कार्यों की पारदर्शिता की जांच कर सकें। यह धारा निजता का सम्मान करती थी, लेकिन साथ ही यह भी कहती थी कि यदि सूचना सार्वजनिक हित में है, तो वह दी जा सकती है।

लेकिन DPDP एक्ट की नई धारा 44(3) में यह प्रावधान हटा दिया गया है, जिससे यह सवाल उठता है – क्या सरकार अब अपने फैसलों को छुपाने के लिए निजता का बहाना बनाएगी?

विपक्ष का मांग: तुरंत निरस्त हो धारा 44(3)

भारत ब्लॉक का कहना है कि धारा 44(3) को तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए क्योंकि यह सूचना के अधिकार के बुनियादी ढांचे को कमजोर करता है। उनका यह भी दावा है कि इससे जनता की भागीदारी, मीडिया की स्वतंत्रता, और लोकतंत्र के मूल सिद्धांत खतरे में पड़ सकते हैं।

यह भी पढ़े : वक्फ संशोधन अधिनियम पर बंगाल में हिंसा: मुर्शिदाबाद में 22 गिरफ्तार, इंटरनेट सेवाएं बंद

सरकार का पक्ष अब तक स्पष्ट नहीं

सरकार की ओर से अब तक इस मामले पर कोई विस्तृत बयान नहीं आया है। हालांकि, पहले के वक्तव्यों में यह तर्क दिया गया था कि डिजिटल युग में नागरिकों की निजता की रक्षा के लिए सख्त कानूनों की जरूरत है। लेकिन सवाल यह है कि क्या निजता की रक्षा के नाम पर लोकतंत्र की पारदर्शिता को दांव पर लगाया जा सकता है?

रिलेटेड न्यूज़

- Advertisement -spot_img

ताजा खबर